यह सत्य है कि उस समयकी सरकारके लिए बहुपत्नीक विवाहको मान्यता न देना असुविधाजनक था, क्योंकि वहाँका प्रभावशाली वर्ग चाहता था कि गिरमिटिया भारतीय यहाँ बुलाये जायें। पर आज स्वतन्त्र भारतीय अधिवासियोंके बहुपत्नीक विवाहको मान्यता देना सरकार असुविधाजनक मानती है क्योंकि वे अनधिकार प्रवेश करनेवाले जो ठहरे। देखें, स्थानीय सरकार इस उलझनसे कैसे निकलती है।
इंडियन ओपिनियन, १९-४-१९१३
२६. नेटाली भारतीयो, सावधान !
अस्थायी रूपसे प्रान्तसे चले जानेवालोंके अधिकारोंकी हिफाजतके लिए प्रमाणपत्र जारी करने के सम्बन्धमें जो सरकारी विज्ञप्ति अन्यत्र प्रकाशित की जा रही है, वह दरअसल मौतका फंदा है और हमें आशा है कि एक भी भारतीय उसमें नहीं फंसेगा। विज्ञप्ति जो-कुछ करना चाहती है, उसका नेटाल प्रवासी अधिनियममें कहीं कोई विधान नहीं है। नया प्रवासी विधेयक लागू न हो तो भी यह नेटाल-कानूनको केप-कानूनके रंगमें रगनेका एक निर्लज्ज प्रयास है। विज्ञप्तिसे मालूम होगा कि जो भारतीय उक्त प्रमाणपत्र लेता है उसे केवल एक साल की अवधि मिलेगी और यदि वह पुनः परीक्षाकी कठिनाईसे बचना चाहता है तो उसे इसी अवधिके अन्दर लौट आना होगा। इस प्रमाणपत्रके लिए एक पौंड शुल्क भी देना पड़ता है और चूंकि उपयोगके तुरन्त बाद उसे वापस जमा कर देना होगा इसलिए नेटालसे प्रत्येक बारकी अनुपस्थितिका अर्थ न केवल नये सिरेसे जाँच है बल्कि हर बार एक पौंडका नया शुल्क भी देना है। इस प्रकार मान लीजिए कि एक व्यापारीको चार बार नेटालसे बाहर केपके लिए जाना पड़ता है और वह अवकाशके इन टिकटोंसे. लाभ उठाना चाहता है तो उसे उनके लिए ४ पौंड देने पड़ेंगे। यह एक सरासर अन्यायपूर्ण कर है। गरीबोंसे पैसा वसूल करनेके लिए ईजाद किया गया यह तरीका दुष्टतापूर्ण है। हमें तंग करके देश छोड़कर चले जानेके लिए विवश करनेकी सरकारकी इस सबसे नई कोशिशके विरुद्ध एक जबरदस्त विरोधपत्र भेजना भारतीयोंका कर्तव्य है।
इंडियन ओपिनियन, १९-४-१९१३