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दुआ मांगती है
कि मानवीय जरूर हो पिंजरा

मां जानती है मगर
कि ना पिंजरा कभी मानवीय होता है
न पिंजरे की व्यवस्था

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 19