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राज्य लक्ष्मी ने उसे ऐसा उन्मत्त कर दिया जैसा मदिरा उन्मत्त कर देती है। यदि वह उन्मत्त न हुआ होता तो यशोरूपी सारा वस्त्र गिर जाने पर भी क्या उसे ज्ञान न होता?

वसन्त-वर्णन के अन्तर्गत मलयानिल का वर्णन:-

कृतप्रकोपाः पवनाशनानां
निवासदानादिव पन्नगानाम्।
विनिर्ययुश्चन्दनशैलकुञ्जा--
दाशामुर्दाचीमिव गन्धवाहाः॥

सर्ग ७, पद्य ५ ।

पवन-भक्षी सर्पों को इसने अपने आश्रय में रक्खा; इसी लिए कुपित सी होकर सुगन्धित पवन, मलयाचल को छोड़, उत्तर-दिशा की ओर चली।

चन्द्रलेखा की आँखों का वर्णन-

मृगासम्बन्धिनी दृष्टिरसौ यदि न सुभ्रवः।
धावति श्रवणोत्तंसलीलादूर्वाङ्कुरे कुत:॥

सर्ग ८, पद्य ७२ ।

यदि इस सुन्दर-भृकुटीवाली ने अपनी दृष्टि हरिणियों से नहीं पाई तो वह कान पर रक्खे हुए दूर्वादल की ओर क्यों दौड़ती है? सच है, दूब