था । रूपदीप पिंगल वाले ने भी नीचे लिखा छप्पय का लक्ष्ण कहा है उसमें उसने भी यह कहा है कि इस ग्रंथ के बनाने के समय तक 'छप्पै' का नामांतर 'कवित्त' करके प्रसिद्ध था--
छप्पै
'लघु दीरं नहि नेम । मत्त चौबीस करीजै ॥
ऐसे ही तुक सार। धार तुक चार भरीजै ॥
नाम रसावल होय । और वस्तू कमि जानहु॥
उल्लाला को विरत । फेर तिथि तेरह श्रानहु ॥
है तु बनाव अंत की । यत यत में अठ बीस गहु ॥
सुन गरुड़ पंख पिंगल कहै । छप्पै छंद कवित्त यहु । '
इसके अतिरिक्त कवि कृत 'रघुनाथ रूपक' में भी उसने छप्पै छंदों को कवित्त करके लिखा है ।"
अरिल्ल
च्यारि प्रकार पिषि वन वारन ।
भद्र मंद नग जाति सधारन ॥
पुच्छि चंद कवि को[१] नरपत्तिय ।
सुर वाहन किम इ घरतिय ॥छं ० ४
चंद कवि का उत्तर --
कवित्त
भादार्थ –रू० ४–[ चामंडराय पृथ्वीराज से कहता है-- ] " (उस) वन में भद्र, मंद, मृग और साधारण- ( ये ) चार प्रकार के हाथी देखे जाते हैं ।" ( तब ) नरपति ( पृथ्वीराज ) ने चंद कवि से पूछा कि देवताओं का वाहन पृथ्वी पर किस प्रकार आ गया ।