सामंतों और रक्षकों द्वारा लूटने पर शाही सेना के श्राक्रमण परन्तु युद्ध में हारकर भाग खड़े होने का वृतान्त है । बायनवें 'द्वितीय हाँसी युद्ध वर्णन ' में हाँसी में तातार ख़ाँ की पराजय सुनकर सुलतान का स्वयं गढ़ का घेरा डालने और उसके रक्षकों से दुर्ग का अधिकार देने के प्रस्तावस्वरूप विकट संग्राम का प्रारम्भ तथा पृथ्वीराज का स्वम में हाँसी की दुर्दशा देखकर रावल जी को उधर ही बुलाकर स्वयं प्रस्थित होने और यवन-सेना से भिडकर उसे भगाने का हाल है। चौवन 'पज्जून पातसाह जुद नाम प्रस्ताव' में धर्मायन कायस्थ द्वारा पज्जूनराय के महुवा दुर्ग नागौर जाने का समाचार पाकर गोरी शाह का नागौर पर आक्रमण, युद्ध में विषम वीरता प्रदर्शित करके पज्जून का शाह को पकड़ने और पृथ्वीराज द्वारा दंड लेकर उसे छुटकारा देने का कथन है । पचपनवें 'सामंत पंग जुद्ध नाम प्रस्ताव' में जयचन्द्र का रावल जी को अपने पक्ष में करने के प्रयल में असफलता, पृथ्वीराज से नाना का आधा राज्य माँगने पर गोविन्दराय का करारा उत्तर सुनकर दिल्ली राज्य के मुख्य-मुख्य स्थानों को घेरने, श्राखेट के कारण पृथ्वीराज के बाहर होने पर कैमास, कन्ह, अताताई आदि सामंतों के दिल्ली-दुर्ग में कन्नौज की विशाल वाहिनी द्वारा बिरने और युद्ध प्रारम्भ होने पर जयचन्द्र की सेना के ऊपर बाहर से पृथ्वीराज का आक्रमण होने से उसका साहस भंग होकर तितर-बितर हो जाने की चर्चा है । छप्पनवें 'समर पंग जुद्ध नाम प्रस्ताव' में जयचन्द्र द्वारा रावल जी के चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण में, उनका वीरतापूर्वक मोर्चा लेकर विजयी होने का वृत्त है | सतानवें "कैमास वध नाम प्रस्ताव' में चंद पुंडीर द्वारा राजकुमार रैनसी में दुर्भावना-पोषण का संदेह पृथ्वीराज को दिलाकर या मंडराय के बेड़ियाँ डलवाने, दिल्ली-दुर्ग का भार कैमास पर रखकर चौहान के गया हेतु बाहर जाने, इधर कर्नाटकी और कैमास के परस्पर आकर्षित होकर रति-लीन होने का दृश्य महारानी इच्छिनी द्वारा पृथ्वीराज को रातोरात बुलाकर दिखाने के फलस्वरूप उनका शब्द-बेधी-वारा से कैमास को मारकर भूमि में गाड़ने, राजा के वन-शिविर में लौट जाने तथा वन्दिनी कर्नाटकी के निकल भागने और दूसरे दिन दरबार में कैमास की अनुपस्थिति का कारण पूछते हुए चंद की सिद्धि को ललकारने पर रहस्योद्घाटन के फलस्वरूप सामंतों का खिन्न चित होकर अपने-अपने घर जाने और कवि द्वारा भर्त्सना करने तथा बरदायी के अनुरोध पर कैमास का शव उसके परिवार को देने परन्तु अपने को हृद्म वेश में जयचन्द्र
पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२६
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ११६ )
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/b/ba/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%9F_%28%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%29.pdf/page126-918px-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%9F_%28%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%29.pdf.jpg)