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द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव

विपत्ति पर विपत्ति आने लगी। सन्ध्याकाल से ही हवा बहुत तेज़ बह रही थी। इसलिए उन को शीघ्र भागने का भी अवसर न मिला। हवा समुद्र से किनारे की ओर बह रही थी। हवा की झोंक और ज्वार की लहर से नावे एकदम सूखे में आ लगी थीं और हवा लगने से एक की टक्कर दूसरी में लगते लगते टूट फूट गई थीं।

हमारे सैनिक विजय प्राप्त कर के उल्लसित हो उठे, किन्तु उस रात में उन लोगों को विश्राम नसीब न हुआ। वे लोग कुछ देर दम लेकर देखने गये कि असभ्य-लोग क्या करते हैं। युद्ध-स्थल के भीतर होकर जाते समय उन लोगों ने देखा कि तब भी कोई कोई असभ्य ऊपर को दम खींच रहे हैं, पर अधिक देर तक उनके बचने की संभावना न थी। उन की अन्त-कालिक अवस्था देख कर हमारे दल के लोग दुःखी हुए, कारण यह कि युद्ध में शत्रुओं का निपात करते दुःख नहीं होता, किन्तु उनका दुःख देख कर सुखी होना सहृदयता का लक्षण नहीं। जो हो, हम लोगों के असभ्य नौकरों ने कुठार के आघात से, उन आसन्नमृत्यु शत्रु-सैनिको को सब कष्टों से छुड़ा दिया।

आख़िर उन्होंने देखा कि एक जगह लगभग सौ हतावशिष्ट असभ्य ज़मीन में बैठे हैं और घुटनों पर हाथ और हाथ पर सिर रक्खे अपनी दुर्दशा को सोच रहे हैं।

हमारे पक्ष के लोगों ने उन्हें डरवाने के लिए सर्दार की आज्ञा से दो बन्दूकों की खाली आवाज़ की। शब्द सुनते ही वे लोग डर गये और चिल्लाते हुए जङ्गल के भीतर जा छिपे। अब एटकिंस ने उनकी डोंगियों को नष्ट कर डालने की