कविवर सूरदास ] १६६ [ 'हरिऔध' में यथास्थान लिखू गा। इन तीनों महान् साहित्यकारों में काल की दृष्टि से सूरदासजी का प्रथम स्थान है, तुलसीदासजी का द्वितीय और केशव- दासजी का तृतीय। इसलिए इसी क्रम से मैं आगे बढ़ता हूँ। ____ कविवर सूरदास ब्रजभाषा के प्रथम प्राचार्य हैं । उन्होंने ही ब्रजभाषा का वह शृङ्गार किया जैसा शृङ्गार आज तक अन्य कोई कवि अथवा महा- कवि नहीं कर सका। मेरा विचार है कि कविवर सूरदासजी का यह पद हिन्दी-संसार के लिए आदिम और अन्तिम दोनों है। हिन्दी भाषा की वर्तमान प्रगति यह बतला रही है कि ब्रजभाषा के जिस उच्चतम अासन पर वे आसीन हैं सदा वे ही उस आसन पर विराजमान रहेंगे समय अब उनका समकक्ष भी उत्पन्न न कर सकेगा। कहा जाता है, उनके पहले का 'सेन' नामक ब्रजभाषा का एक कवि है। हिन्दी संसार उससे एक प्रकार अपरिचित-सा है। उसका कोई ग्रन्थ भी नहीं बतलाया जाता। कालिदास ने औरंगजेब के समय में हजारा नामक एक ग्रंथ की रचना की थी। उसमें उन्होंने 'सेन' कवि का एक कवित्त लिखा है, वह यह है- जब ते गोपाल मधुबन को सिधारे पाली, मधुबन भयो मधु दानव बिषम सों। 'सेन' कहै सारिका सिखंडी खंजरीट सुक मिलि कै कलेस कीनो कालिँदी कदम सों। जामिनी वरन यह जामिनी मैं जाम-जाम बधिक की जुगुति जनावै टेरि तम सों। देह करै करज करेजो लियो चाहति है, ____ काग. मई कोयल कगायो करै हमसों। कविता अच्छी है, भाषा भी मँजी हुई है। परन्तु इस कवि का काल संदिग्ध है। मिश्रबन्धुत्रों ने शिवसिंह सरोज के आधार से इनका काल
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