१५४ को प्रस्ताव उठा लेना पड़ा। यह वर्तमान सभ्य जगत के सर्वप्रधान देश का हाल है, तन करने वाले महाशय इस रहस्य का उद्घाटन करके स्वयं सोचे कि गणिका का नायिकाओं मे स्थान पाना सगत है या असगत । साहित्यकारो ने स्वय यह बतलाया है कि कौन-कौन विपय अश्लील और जुगुप्सा-जनक हैं। यदि उन की दृष्टि मे नायिका-भेद अमर्यादित और जुगुप्सा-मय होता तो कभी वे अपने ग्रथों मे उसे ग्थान न देते और न उसे शृगार रस मानते । प्राय ब्रजभाषा की नायिका-भेद की रचनाओ पर कटाक्ष करते हुए यह कहा जाता है कि जिस समय भारत का पतन हो रहा था, और वह दुर्व्यसनों और भोग लिप्साओं मे फंस गया था, उन्हों दुर्दिनो मे नायिका भेद की कल्पना की गई, और विषय-प्रिय लोगों के उत्साह दान से वह लालित, पालित और परिवर्द्धित हुई । कितु इतिहास से ऐसा पाया नहीं जाता। नायिका भेद का इतिहास आप लोग सुन चुके । जिस काल में उसकी उद्भावना हुई, उस समय ब्रजभाषा का कंठ भी नहीं फूटा था, फिर उस पर इस प्रकार का कटाक्ष कहाँ तक सगत है। शृगार रस का दुरुपयोग ससार मे उत्तम से उत्तम और पवित्र से पवित्र कोई ऐमी वस्तु नहीं, जिसका दुरुपयोग न हो सके। सुधा स्वर्गीय पदार्थ है, और उसमें जीवनप्रदान क्षमता है। किंतु यदि किसी ससार-उत्पीड़क को जीवन दान करने के लिये उसका उपयोग होगा, तो यह उपयोग सदुपयोग न होगा, दुरुपयोग कहलावेगा । जल का नाम जीवन है, यदि उसका उपयोग उचित मात्रा मे होगा, तो वह स्वास्थ्यरक्षा का प्रधान साधन बनेगा, कितु यदि वह आवश्यकता से अधिक पी लिया जावे, तो.व्याधि का कारण और कष्टदायक होगा। इसलिये सब वस्तुओ का सदुपयोग ही वाछनीय है । शृगार रन क्या है, यह मै बतला चुका हूँ, उसकी उप- योगिता ससार-व्यापिनी हे, केंतु दु ख है, उसका दुरुपयोग भी हुआ। -
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