पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१४१

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संक्षिा लिहाय-अकरक और भयानक रसों को छोड़ देश अन्य रसों के भी बड़े ही उत्तम उदाहरण उनमें पावसाते है। सबसे बढ़कर बात यह है कि मानवीय प्रकृति का दर्शन शेक्सपियर ने अद्वितय किया है। इस विषय में गोवालोजी तो उसने ना दिखा दिया है। पर स्वामीजी ने माजुवीय प्रकृति का अत्यंत सच्चा और ममोहर वईन के ईश्वदी प्रकृति, शांत-रस, काव्यांग और भकिभाव ही जो अदद नरको प्रवाहित की हैं, उसे निमन होकर के इस स्मार्थी संसार के बहुत परें उठ गए हैं, उनका काद साधारण संसारी सतिश के विद्वानों को पर्यनीति से अनुभूत नहीं हो सकता। कोस्वामीजी के दर्शनों को एडसर अन्नप्य नोची और ऊँचो सभी प्रकार की प्रवृत्तियों को भली भाँति मारकर उत्तम मार्ग की ओर ही प्रचूस होगा। भत्रि का जो गंभीर बीर हृदयद्रावक भाव इनकी रचनाधा में हर स्थान पर वर्तमान रहता है, उसके सामने शेक्सपियर कुछ भी उपस्थित नहीं कर सकता। बंदना, विनय, अयोध्या कांड के सभी बहन, अनेक विनतियाँ, लंका दहन (कवितावली का), बाल-लीला और ज्ञान-भक्ति श्रादिक जैसे अच्छे गोस्वामीजी ने कहे हैं, उनके जोड़ शेक्सपियर श्रादि में नहीं मिलते। भाषा और कविता-शैली मेंदबसीदासजी ने पृथक-पृथक् चार प्रकार के ऋविर की भाँति रचनाएँ की है, जिनके उदाहरण-स्वरूप रामचरितसामस, सवितावळी, कृष्णा-बीतावली और विनय-पत्रिका क्रही मा सकती है। दोहावली और सतसई आदे में इनकी एक पाँचवों हो छटा देव पड़ती है । इनके शेष ग्रंथ इन्हीं पांच विभागों में पागे । अकचरी दरबार के कवि सौर-काल से ही दृष्टिगोचर होने लगे थे, परंतु भाषा-काज्य पर इनका विशेष प्रभाव तुलसी-काल में पड़ा। इस अभाव के कारण विविध विषयों की परिपाटी पड़ी एवं फारसी के चमत्कारी भावों का प्रवेश हिंदी-साहित्य में हुआ।