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मुरशिदाबाद

गञ्ज भागीरथी के एक किनारे पर है । मुरशिदाबाद दूसरे किनारे पर । मुरशिदाबाद का पुराना नाम मकसूदाबाद है। नव्वाब मुरशिद-कुली-खां ने १७०४ ईसवी में,अपने नाम के अनुसार,उसे मुरशि- दाबाद में बदल दिया। १२०३ ईसवी में बखतियार खिलजी ने पहले पहल बङ्गाल में मुसलमानी अमल की नींव डाली। तवसे मुरशिद-कुली खां तक ६८ नव्वाव वङ्गाल के मुसलमानी तख्त पर बैठे। मुरशिदकुली खाँ ने ढाका छोड़ कर मुरशिदाबाद को अपनी राज- धानी बनाया। मुरशिद ने हिन्दू-कुल में जन्म लिया था। वह एक गरीब ब्राह्मण का लड़का था । इस्फ़हान के हाज़ो सफ़ी नामक एक मुसलमान व्यापारी ने उसे मुसलमान बनाकर उसका पालन-पोषण किया था। औरङ्गजेब के समय में वह हैदराबाद का दीवान था। १७०१ ईसवी में वह बङ्गाल का दीवान मुकरर्र हुआ। १७०४ में वह मुरशिदाबाद आया । अठारहवीं सदी के प्रथमार्द्ध में मुसल- मानी राज्य की खूब उन्नति हुई । पर उसके उत्तरार्द्ध से उसकी अवनति शुरू हुई। उसकी अवनति के साथ ही साथ अंगरेजी-राज्य की उन्नति होती गई। १७६५ ईसवी में देहली के नाममात्रधारी बाद -शाह से ईस्ट इंडिया कम्पनी नाम के अंगरेजी-वणिक-समूह ने बडाल,बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त की। तबतक भी मुरशिदाबाद बङ्गाल की राजधानी रहा। पर १७९३ ईसवी में स्वदेशी राज्य का शेष चिन्ह भी प्रायः जाता रहा और नव्वाब नाज़िम की सब शक्ति और प्रभुत्व लुप्त हो गई। नव्वाब नाज़िम का खिताब भर बाकी रह गया। वह भी १८८० ईसवी में न रहा। मुर-