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जहांगीर बादशाह सं० १६६४।

शहरआरा बाग देखनेको लिये उसके पांवसे बेड़ी खुलवा दी यह काम पितृप्रेमसे हुआ।

अटकका किला अहमदबेगसे हटाकर जफरखांको दिया गया और ताजखांको जो बंगश जातिके पठानों पर भेजा गया था पचास हजार रुपये दिये गये।

मानसिंह।

राजा मानसिंहके पोते महासिंहको भी बादशाहने वंगशकी मुहिम पर भेजा और राजा रामदासको उसका शिक्षक बनाय ।

वर्षगांठकी तुला।

१८ शुजवाद (सावन बदी ४) को बादशाहकी ४० वीं सौम वर्षगांठका तुलादान दोपहर पीछे हुआ। उसमेंसे दस हजार रुपये गरीबोंको बांटे गये।

शाह ईरान।

मरदारखां हाकिम कन्धारकी अरजी हजारा और गजनीनके रास्तेसे १२ दिनमें पहुंची। लिखा था कि शाह ईरानका एलची जो दरगाहमें हाजिर होनेके लिये आता है हजारमें पहुंच गया है और शाहने अपने सेवकोंको लिखा है कि कौन दराचारी बिना हुक्म कन्धार पर गया है जो नहीं जानता है कि हमारे और हज- रत अमीर तैमूर और हुमायूं बादशाहको सन्तानमें क्या सम्बन्ध है। जो वह देश ले भी लिया हो तो मेरे भाई जहांगीर बाद- शाहके नोकरोंको देकर लौट आवे।

राना सगर व राय मनोहर।

१९ (सावन बदी ५) शनिवारको रानी शंकर (सगर) का मन- सब अढ़ाई हजारी जात दो हजार सवारका, और राय मनोहरका एक हजारी ६०० सवारोंका होगया।

कुतुबुद्दीन कोकाका मारा जाना।

२७ रविवार (सावन बदी १४) की शामको इसलामखांकी