पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८७

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३२ कहा चुनावै मेड़ियाँ लम्बी भीति कविता-कौमुदी उसारि । मोहिं । ॥ २३ ॥ साथ । घर तो साढ़े तीन हथ घना तो पौने चारि ॥ २२ ॥ माटी कहें कुम्हार को तू क्या रूँदै इक दिन ऐसा होइगा मैं रूँदूँगी तोहि यह तन काँचा कुम्भ है लिये फिरै था टपका लागा फूटिया कछु नहिं आया हाथ || २४ || आये हैं सेो जायगे राजा रंक फकीर ।। एक सिंघासन चढ़ि चले आसपास जोधा खड़े मंझ महल से लै चला या दुनिया में आय के छाड़ि दे तू लेना होय सो लेइ ले उठी जात है पैंठ कबीर आप ठगाइये और न ठगिये एक बंधे जंजीर ॥ २५ ॥ बजावै सभी ऐसा काल ज्यों गाल || कराल || २६ | ऐंठ । ॥ २७ ॥ कोय | ॥ २८ ॥ ठाट । गाडर की जाहि तेहि बाट ।। २६ । आप ढंगे सुख ऊपजै और ठगे दुख होय ऐसी गति संसार की एक पड़ा जेहि गाड़ में सबै नू मत जान बावरे मेरा fus प्रान से बैधि रहा इक दिन ऐसा होगा घर की नारी को कहै नाम भजो तो अब भजो हरियर हरियर रुखड़े माली आवत देखि कै फूली फूली चुनि लिये हम जानें थे खाहिंगे क्यों का त्यों ही रहि गया है सब कोय ॥ सो अपना नहि होय ॥ ३० ॥ कोड काहू का नाहि । तन की नारी जाहि ॥ ३१ ॥ बहुरि भजोगे कञ्च । ईंधन हो गये सब्ब ॥ ३२ ॥ कलियाँ करी पुकार । कालि हमारी बार ॥ ३३ ॥ बहुत जमी बहु माल । पकरि लै गया काल || ३४ ॥