कबीर साहब २६ १६ - चाँचर १७ - चौंतीसी, १८-अलिफ नामा, १६ - रमैनी, २०- साखी, २१ - बीजक | कबीर पंथियों में बीजक का बड़ा आदर है । बीजक दो हैं-- एक तो बड़ा, जो स्वयं कबीर साहब का काशिराज से कहा हुआ बतलाया जाता हैं, और दसरे बीजक को कबीर के एक शिष्य भग्गूदास ने संग्रह किया है । दोनों में बहुत कम अंतर हैं । कबीर साहब का उलटा प्रसिद्ध है । मेरी समझ में लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये ही कबीर साहब ऐसा कहा करते थे । यों तो अर्थ लगाने वाले कुछ न कुछ उलटा सीधा अर्थ लगाही लेते हैं परन्तु खींच नान कर लगाये गये ऐसे अर्थों में कुछ विशेषता नहीं रहती । कबीर साहब मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे । यद्यपि ईश्वर का अवतार धारण करना भी वे नहीं मानने थे, परन्तु अपने को उन्होंने स्वयं सत्य लोक वासी प्रभु का दूत वतलाया है । वे कहते हैं काशी में हम प्रगट भये हैं समरथ का रामानन्द परवाना लाये हंस चेताये । उबारन आये || ( शब्दावली ) लोगों का ऐसा कथन है कि मगहर में प्राण त्याग करने से मुक्ति नहीं मिलती। भला सत्यान्वेषक कबीर इस बात को कैसे मान सकते थे, उन्होंने लोगों का यही भ्रम मिटाने के लिये ही मगहर में जाकर शरीर छोड़ा। इस विषय मे उन्होंने कहा है जो कबीर काशी मरे तो रामहिं
निहोरा । जस काशी तस मगहा ऊसर हृदय राम जो होई ।