पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८३

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२८ कविता-कौमुदी कबीर साहब पढ़े लिखे न थे । सतसंगी थे । सतसंग से ही उन्होंने हिन्दू धर्म को गूढ़ गूढ़ बातें जान ली थीं। उनके हृदय में हिन्दू मुसलमान किसी के लिये द्वेष न था : सत्य के बड़े पक्षपाती थे | जहाँ उन्हें सत्य के विरुद्ध कुछ दिखाई पड़ा, वहाँ उन्होंने उसका खंडन करने में जरा भी हिचकि- चाहट नहीं दिखलाई । कबीर साहब ने अपना अधिकार हिन्दू मुसलमान दोनों पर जमाया। आज कल भी हिन्दू मुसलमान दोनों प्रकार के कबीर पंथी मिलते हैं । परन्तु सर्वसाधारण हिन्दू और मुसलमान दोनों का कबीर मत से बैर हो गया । हिन्दू धर्म के नेता एक अहिन्दू के मुख से हिन्दू धर्म का प्रचार देखकर भड़के और मुसलमान, कबीर साहब के हिन्दू आचार्य का शिष्य होने तथा हिन्दू धर्म का प्रचार करने के कारण कट्टर विरोधी हो गये । इस विरोध के कारण उनको बड़ी बड़ी कठिनाइयाँ भोगनी पड़ीं। परन्तु उनके हृदय में जो सत्य का दीपक जल रहा था, वह किसी के बुझाये नबुझा | कबीर साहब ने स्वयं कोई पुस्तक नहीं लिखी । वे साखी और भजन बना कर कहा करते थे, और उनके चेले उसे कंठस्थ कर लेते थे, पीछे से वह सब संग्रह कर लिया गया । कबीर पंथ के अधिकांश उत्तम उत्तम ग्रन्थ उनके शिष्यों के हुए कहे जाते हैं । "ख़ास ग्रन्थ " में निम्न लिखित पुस्तकें हैं । १- सुखनिधान, २- गोरख नाथ की गोष्ठी, ३- कबीर पाँजी, ४ - बलख की रमैनी, ५- आनन्द राम सागर, ६ - रामानन्द की गोटी, ७- शब्दावली, ८-मङ्गल, ध्बसन्त, १०- होली, ११ - रेखता १४- हिन्दोल १५- बारहमासा, १२- झूलन, १३- कहरा,