पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ शिष्य थे। स्वामी रामानंद शेष रात्रि में गंगा स्नान के लिये मणिकर्णिका घाट पर नित्य जाया करते थे। एक दिन इसी समय कबीर साहब घाट की सीढ़ियों पर जाकर सो रहे । अँधेरे में स्वामी जी का पैर उनके ऊपर पड़ गया । तव वे कुलबुलाये | स्वामी जी ने कहा- राम राम कह; राम राम कह" । कबीर साहब ने उसी को गुरुमंत्र मान लिया । उसी दिन से उन्होंने काशी में अपने को स्वामी रामानंद का शिष्य प्रसिद्ध किया । यवन के घर में पले होने पर भी कबीर साहब की प्रवृत्ति हिन्दु धर्म की तरफ अधिक थी । कबीर साहब अपने जीवन का निर्वाह अपना पैतृक व्यवसाय करके ही करते थे। यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हैं - हम घर सूतत नहिं नित ताना" । कबीर साहब ने विवाह किया था या नहीं, इस विषय में भी बड़ा मतभेद है। कबीर पंथ के विद्वान कहते हैं कि लोई नाम की स्त्री उनके साथ आजन्म रही, परन्तु उन्होंने उससे विवाह नहीं किया । इसी प्रकार कमाल उनका पुत्र और कमाली उनकी पुत्री थी, इस विषय में भी विचित्र बातें सुनी जाती हैं । " डूबे बंस कबीर के उपजे पूत कमाल" यह भी एक कहावत सा प्रसिद्ध हो रहा है । इससे पता चलता है कि कबीर ने विवाह अवश्य किया था और कमाल कबीर का पुत्र था, कमाल भी कविता करते थे। परन्तु उन्होंने कबीर साहब के सिद्धान्तों के खडन करने हो में अपनी सारी उम्र बितादी । उसी से " डूबे बंस कबीर के उपजे पूत कमाल ' कहा गया है। कबीर साहब बड़े ही सुशील और बड़े सदाचारी थे। एक दिन की बात है कि उनके यहाँ बीस पच्चीस भूले