पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८०

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कबीर साहब २५ बतलाते हैं । उनके कथनानुसार कबीर साहब का जन्म १२०५ वि० में और मरण १५०५ वि० में हुआ है। इनमें से किसकी बात सत्य है ? इसका निर्णय करना बड़ी खोज का काम है । कबीर पंथ के विद्वानों की राय में कबीर साहब का जन्म संवत् १४५५ ही सत्य कहा जाता है । कबीर साहब ने अपने को जुलाहा लिखा है । एक जगह वे कहते हैं- तू ब्राह्मण मैं काशी का जुलहा बुझहु मोर गियाना । ( आदि ग्रंथ ) इससे अब इस बात में तो कुछ संदेह रह ही नहीं जाता कि कबीर साहब जुलाहे थे । परन्तु वे जन्म के जुलाई नहीं थे, यह कहावतों से मालूम होता है । कहा जाता है कि संवत् १४५५ की ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को एक ब्राह्मण की विधवा कन्या के पेट से एक पुत्र पैदा हुआ । लोक लज्ञावश उसने बालक को लहर तालाब (काशी) के किनारे फेंक दिया । संयोग से नीरू जुलाहा अपनी स्त्री नीमा के साथ उसी राह से आरहा था । उसने उस अनाथ बच्च े को घर लाकर पाला । पीछे वही कबीर नाम से विख्यात हुआ । कबीर साहब बालकपन से ही बड़े धर्मपरायण थे । जब उनको सुध बुध होगई तब वे तिलक लगा कर राम राम करते थे । एक जुलाहे के घर में रहकर तिलक लगाना और राम राम जपना असंभव सा प्रतीत होता है ? परन्तु संगति का प्रभाव बड़ा विचित्र होता है । वह असंभव को भी संभव कर देता है । ऐसी कहावत हैं कि कबीर साहब स्वामी रामानंद के