पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७९

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२४ संभारि । पसारि ॥ नील वसन तन घेरलि सजनी सिरे लेल चिकुर तापर भमर पिवय रस सजनी बेसल पंख केहरि सम कटि गुन अछि सजनी लोचन अंबुज धारि । विद्यापति यह गाओ सजनी गुन पाओलि अवधारि ।। १६ ।। सं कबीर साहब युक्त प्रांत में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू हो जो कबीर साहब को न जानता होगा | कबीर साहब के भजन, मंदिरों में और सत्संग के अवसरों पर गाये जाते हैं । उनकी साखियाँ प्रायः कहावतों का काम दिया करती हैं । कबीर साहब एक पंथ के प्रवर्तक थे, जिसे कबीर पंथ कहते हैं । कबीर पंथियों में निम्न श्रेणी के लोग अधिकांश पाए जाते हैं । उनमें से कुछ तो साधू हैं जो गाँवों में कुटी बना कर रहते हैं और कुछ गृहस्थ हैं। कबीरपंथी साधू सिर पर नोकदार पीले रंग की टोपी पहनते हैं । कबीर साहब कौन थे ? कहाँ और किस समय में व उत्पन्न हुये ? उनका असली नाम क्या था ? बचपन में व कौन धर्मावलंबी थे ? उनका विवाह हुआ था या नहीं ? और वो कितने समय तक जीवित रहे ? इन बातों में बड़ा मतभेद हैं। कबीर साहब की जीवनी लिखने वाले भिन्न भिन्न बातें बतलाते हैं । उनमें सत्य का अंश कितना है, इसका पता लगाना सहज नहीं है । "कबीरकसौटी" में कबीर साहब का जन्म संवत् १४५५ वि० में और मरण १५७५ वि० में होना लिखा है । कबीर पंथी लोग उनकी उम्र तीन सौ वर्ष की