पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१३२

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सूरदास जन्म सिरानो ऐसे ऐसे । कै घर घर भरमत यदुपति बिन के सोवत के वैसे || कै कहु खान पान रसनादिक कै बा असे 1 के कहूँ रंक कहूँ ईश्वरता नद बाजीगर जैसे ॥ जैसे । ॥ ४५ ॥ चेत्या नहीं गयो दरि अवसर मीन बिना जल यह गति भई सूर की ऐसी श्याम मिलै धौं कैसे काया हरि के काम न आई । हरि यश सुनयो तहाँ जात अलसाई ॥ भाव भक्ति जह लोभातुर हैं काम मनोरथ तहाँ सुनत उठि धाई । क्योहूँ न जात नवाई | चरन कमल सुन्दर जहँ हरि को जब लगि श्याम अंग नहि परसत आँखें सूरदास भगवंत भजन बिनु विषय परम विष सबै दिन गये विषय के हेत । जोग रमाई । तीनौ पन ऐसेही बीते केस आँखिन अन्ध श्रवण नहि सुनियत थाके चरन गंगाजल तजि पियत कूपजल हरि तजि पूजत राम नाम बिन क्यों छूटोगे चन्द्र गहे ज्यों सूरदास कछु खर्च न लागत राम नाम मुख लेत खाई ॥ ४६ ॥ भये सिर सेत ॥ समेत । प्रेत ॥ केत । ॥ ४७ ॥ सुधरतौ ॥ जो 'तू राम नाम चित धरतौ । अबको जन्म आगलो तेरो दोऊ जन्म यम को त्रास सबै मिटि जाता भक्त नाम तेरो परतौ । तंदुल घृत संवारि श्याम को संत परोसा करतौ ॥ होतो नफा साधु की संगति मूल गाँउते दरतौ । सूरदास बैकुठ पैंठ में कोऊ न फेंट पकरती ॥ ४८ ॥