पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/११७

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कविता-कौमुदी लड़ाई में मारे गये । सूरदास अपने को चन्द्र बरदायी का वंशज बतलाते हैं । सूरदास जन्म के अन्धे न थे। ऐसी कहावत है कि एक बार ये एक युवती को देखकर उसपर मुग्ध हो गये । उसकी ओर एकटक ताकते हुए ये बहुत देर तक खड़े रहे । अंत में वह युवती इनके पास स्वयं आई और कहने लगी-- महाराज, क्या आशा है ? सूरदास को उस समय अपनी स्थिति पर बड़ी लज्जा आई । इन्हों ने यह दोष आँखों का समझ कर उस युवती से कहा कि यदि तुम मेरी आज्ञा मानती हो तो सुई से मेरी दोनों आंखें फोड़ दो । युक्तो ने आज्ञानुसार ऐसा ही किया । तब से सुरदास अंधे हो गये । भक्तमाल में लिखा है कि सूरदास जन्म के अंधे थे। परन्तु इस पर सहसा विश्वास नहीं होता, क्योंकि इन्होंने अपनी कविता में रंगों का, ज्योति का और अनेक प्रकार के हाव भाव का ऐसा यथार्थ वर्णन किया है जो बिना आंख से देखे, केवल सुनकर, नहीं किया जा सकता । सूरदास की कविता के लालित्य और माधुर्य के विषय मैं तो कहना ही क्या है ? हिन्दुओं के घर घर में इनके भजन बड़े प्रेम से गाये और सुने जाते हैं । हिन्दुस्तान के गवैये सूरदास के भजन बड़े चाव से गाते हैं। राम चरित्र लिखने में जैसी तुलसीदास जी ने अपनी प्रतिभा दिखलाई है उसी तरह श्रीकृष्ण की लीला लिखकर सूरदास ने भी अपनी अनु- म कवित्व शक्ति का परिचय दिया है। प्रेमी और भक्त जनों के हृदयों में सूरदास के भजनों से आनन्द का समुद्र उमड़ पड़ता है । कविता द्वारा बाल चरित्र का ठीक ठीक चित्र aa के सामने कर देने की इनमें मलौकिक पटुता थी ।