पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/११५

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६० ears-stat सुख सनेह जो नर दुख में दुख नहिं माने ॥ भरु भय नहि जाके कंचन मादी जाने ॥ नहि निन्दा नहि अस्तुति जाके लोभ मोह अभिमाना ॥ हर्ष शोक में रहे नियारो नाहि मान अपमाना ॥ आसा मनसा सकल त्यागि कै जगते रहे निरासा ॥ काम क्रोध जेहि परसै नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा ॥ गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्ही तिन यह जुगति पिछानी ॥ नानक लीन भयो गोविन्द सों ज्यों पानी सँग पानी ।। १२ ॥ रे मन कौन गत होइ है तेरी । गहि अंग में रामनाम सो तो नहिँ सुन्यो कान । विषयन सां अति लुभान मति नाहिन फेरी ॥ मानस को जनम लीन्ह सिमरन नहिं निमिष कीन्ह । दारा सुत भयो दीन पगहुं परी बेरो ॥ पसार । बानक जन कह पुकार सुपने ज्यों जग सिमरत नहिं क्यों मुरार माया जाकी चेरी ॥ १३ ॥ - 10: सूरदास रदास का जन्म अनुमान से १५४० वि० में ओर मरण १६२० वि० में कहा जाता है। उन्हो ने ६७ वर्ष की अवस्था में सूरसारावली लिखी । सूरदास का सबसे बड़ा ग्रंथ सुरसागर है, सूरसारावली उसी की सूची है, जो सूरसागर के बनने के बाद बनी है। सूरसारावली में लिखा है- 22 गुरु प्रसाद होत यह दरसन, सरसठि वरस प्रवीन । शिव विधान तप करेउ बहुत दिन तऊ पार नहिं लीन ॥