यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६६
आवारागर्द

और लिखा था-संस्था के अनेक सदस्य एक भारतीय पुरातत्वविद से परिचय प्राप्त करने के इच्छुक हैं। इसके बाद लिखा था 'स्पेन की राजकुमारी सोफि़या जो अतुल सम्पिति की उत्तरा-धिकारणी हैं और जो शिकागो युनिवर्सिटी की ग्रेजुएट है, अपने को आपका मित्र समझ कर गौरवान्वित समझती है। राजकुमारी अभी १९ ही वर्प की है, उसकी प्रार्थना है कि आप उन्हें सीधा पत्र लिख कर उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाये।'

पत्र पढ़ कर मेरी नशों मे खून नाचने लगा। मै समझ ही न सका कि आया यह सत्य है या गोरख-धन्धा। मुझे संसार सुन्दर सा प्रतीत होने लगा और ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरे रूखे-सूखे जीवन म रस-वर्पण हुआ है।

मिस्टर लाल को मैने सब हकीकत लिख कर राय पूछी कि अब क्या करना चाहिये। तीसरे दिन उनका पत्र मिला। लिखा था—पौवारह हैं; प्रोफेसर! पत्र का ड्राफ्ट भेज रहा हूँ, इसे खूब बढ़िया कागज पर टाइप करके भेज दो। ड्राफ्ट का अभिप्राय यह था—

"प्रिय राजकुमारी,

आपका परिचय और मैत्री प्राप्त करके मै अपने को संसार का सबसे अधिक भाग्यवान् पुरुष हूँ। ईश्वर करे हमारी यह मैत्री दिन-दिन गम्भीर और सुखद होती जाय। राजकुमारी, यद्यपि हम लोगों को परस्पर दर्शनों का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है; पर हिन्दू फिलाँसफी के विश्वास पर मै यह कहने का साहस कर सकता हूँ कि हम लोग पिछले जन्मके मित्र हैं। प्रिय राजकुमारी, विदा! मै आपके बहुमूल्य पत्र और मैत्री के किसी प्रिय चिन्ह प्राप्ति की आशा में हूँ।

आपका,

........."