नाथ वहाँ विद्यमान हैं तब इस बात की उन्हें चिंता नहीं परंतु स्त्रिया यों ही कोमल होती हैं फिर, इन दिनों में उनकी बहुत ही नाजुक हालत हो जाती है। जब बिना विशेष कष्ट के बच्चा होने पर नहा धोकर जच्चा उठती हैं तब उसका दूसरा अन्य माना जाता हैं। इसलिये अच्छी अनुभवी दाई का तलाश कर देना, उपयुक्त गृहों को पहले से सृतिकागृह के उपयोगी बना देना और इस काम के लिये जिन औषधियों की, जिन पदार्थों की आवश्यकता होती है उन्हें पहले से संभाल लेना । परमेश्वर न करे, कभी वैद की आवश्यकता आ पड़े तो इलाज के लिये गौड़बोले जी वहाँ मौजूद ही थे । गौड़बोले की इच्छा थी कि “इन बातों का ज्ञान पहले से करा देने के लिये प्रियंवदा को कोई पुस्तक अवश्य देनी चाहिए जिग्ने ढ़कर वह तैयार रहें और अपनी देवरानी को भी समझा दे। वह पोथी किसी अनुभवी स्त्री की बनाई हुई हो तो अच्छा ।" परंतु हिंदी में बहुत टटोल लगाने पर भी ऐसी पुस्तक का कही पता न चला और मराठों, गुजराती वह जानती नहीं इसलिये गौड़बोले को मन मारकर रह जाना पड़ा । हां ! इतनी अवश्य किया गया कि पंडित जी और गौड़बोले ने मिलकर कुछ नोट तैयार किए । उनसे जितना मतलब निकल सका उतना प्रियावंदा ने निकालकर संतोष कर लिया । इस तरह सब कामों की व्यवस्था हो गई और उसके अनुसार कार्य होकर जे परिणाम हुआ वह पाठकों ने गत प्रकरणों में पढ़ ही लिया। हाँ पंडित जी को भी
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